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भारत के गौरव : क्षत्रियराज ‘पृथ्वीराज चौहान’

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लेखक –vinita

पृथ्वीराज चौहान भारत के इतिहास का एक गौरवपूर्ण नाम है. यह क्षत्रिय महारथी जितना परमवीर था उतना ही दयालु और क्षमाशील भी था. बीते 19 मई को सम्राट पृथ्वीराज चौहान की जयंती मनाई गई लेकिन इस बात का मलाल भारतवासियों को हमेशा रहेगा कि किस तरह से वामपंथी इतिहासकारों ने हमारे वीर नायकों के साथ भेदभाव किया है उनका क्रूर उपहास किया गया है .

भारत में मोहम्मद गोरी की जीत और पृथ्वीराज चौहान की हार को वर्तमान प्रचलित इतिहास में गलत ढंग से पेश किया गया जिसे नाम दिया जाता है ‘राजपूतों की पराजय के कारण’. इतिहास के पन्नों को पलटे तो मालूम होता है कि राजपूतों की पराजय के लिए मोहम्मद गोरी के चरित्र में चार चांद लगा दिये गये, एक लुटेरे और हत्यारे का महिमामंडन किया गया .

आज की पीढ़ी पृथ्वीराज चौहान की वीर गाथाओं के बारे में ना के बराबर जानती है. पृथ्वी राज चौहान का जन्म उनके माता-पिता के विवाह के 12 वर्षो के पश्चात हुआ. पृथ्वी राज चौहान का जन्म उनके राज्य के दुश्मनों के लिए आंख का कांटा बन गया और राज्य में उनकी हत्या के षड्यंत्र रचे जाने लगे जिससे वो हर बार बच जाते . आज की युवा पीढ़ी के लिए ये जानना जरुरी है कि पृथ्वीराज चौहान ने 12 वर्ष की उम्र में बिना किसी हथियार के खुंखार जंगली शेर का जबड़ा फाड़ डाला था. इतना ही नहीं छोटी उम्र में ही उन्होंने महाबली नाहरराय को युद्ध में हराकर माड़वकर पर विजय प्राप्त की थी। पृथ्वीराज चौहान ने तलवार के एक ही वार से जंगली हाथी का सिर धड़ से अलग कर दिया था ।

इतिहासकारों ने मुगल शासकों का बखान तो पन्ने भर-भर कर किया लेकिन हमसे ये छिपा कर रखा गया कि महान सम्राट् पृथ्वीराज चौहान एक ऐसे योद्धा थे जिन्होंने अपने ताकत के बल पर मुगलों को घुटनों के बल पर ला दिया था. आज की पीढ़ी शायद ही इस बात पर विश्वास करे कि पृथ्वीराज चौहान कि तलवार का वजन 84 किलो था जिसे वे एक हाथ से चलाते थे. सुनने पर विश्वास नहीं होगा लेकिन यह सत्य है..

सम्राट् पृथ्वीराज चौहान पशु-पक्षियों के साथ बातें करने की कला में भी बेहद निपुण थे.  पृथ्वीराज चौहान 1166 ई. में अजमेर की गद्दी पर बैठे और तीन वर्ष के बाद यानि 1169 में दिल्ली के सिंहासन पर बैठकर पूरे हिन्दुस्तान पर राज किया। सम्राट् पृथ्वीराज चौहान की तेरह पत्नियां थी। इनमे संयोगिता सबसे प्रिय और प्रसिद्ध है. पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गोरी को 16 बार युद्ध में हराकर जीवन दान दिया था और 16 बार उसे कुरान की कसम का खिलवाई थी । लेकिन कहीं ने कही ये क्षमादान भूल साबित हुई और गोरी ने 17वीं बार में पृथ्वीराज चौहान को धोखे से बंदी बना लिया और अपने देश ले जाकर चौहान की दोनो आंखें फोड दी थी। लेकिन उसके बाद भी राजदरबार में पृथ्वीराज चौहान ने अपना मस्तक नहीं झुकाया. मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान को बंदी बनाकर कितनी ही यातनाएं दी, गरम सलाखों को उनकी आंखों में डालकर अंधा बना दिया, कई महीनों तक भूखा रखा फिर भी सम्राट् की मृत्यु नहीं हुई ।

सम्राट पृथ्वीराज चौहान की एक और बड़ी विशेषता थी कि वे जन्म से ही शब्द भेदी बाण की कला में माहिर थे . ये कला अयोध्या नरेश “राजा दशरथ” के अलावा केवल पृथ्वीराज चौहान में थी। इसी की वजह से पृथ्वीराज चौहान ने गोरी को उसी के भरे दरबार में शब्द भेदी बाण से मार गिराया था। गोरी को मारने के बाद भी वह दुश्मन के हाथों नहीं मरे. उन्होंने अपने मित्र चन्द्रबरदाई के हाथों मरना चुना. दुश्मन के हाथों मरने से बेहतर दोनों मित्रों ने एक दूसरे को कटार घोंप कर जीवन लीला खत्म कर ली .

ये सोचकर गुस्सा आता है और दुख होता है कि वामपंथी इतिहासकारों ने अपनी किताबों में टीपु सुल्तान, बाबर, औरंगजेब, अकबर जैसे हत्यारों और आतातायियों का महिमामंडन कर किताबों को भर दिया और पृथ्वीराज जैसे योद्धाओं के बारे में जानने से नई पीढ़ी को दूर रखा. उन्हें इतिहास में गुम कर दिया गया. लेकिन हर भारतवासी को उनकी वीर गाथा को जानना चाहिए उसपर गर्व करना चाहिए. कि किस तरह से उन्होंने अपने अद्भुत और अदम्य साहस से मुगलों को धूल चटाई थी।

Story credit- Social Media

 

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