मदनलाल ढींगरा: वो स्वतंत्रता सेनानी जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए 25 की उम्र में गंवा दी थी जान

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लेखक –Kratika Nigam                                                                                                                                                                        Madan Lal Dhingra: भारत मां की बेड़ियों को तोड़ने के लिए कई स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने ख़ून का बलिदान दिया था. भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव के अलावा एक और स्वतंत्रता सेनानी थे, जिनका नाम मदनलाल ढींगरा (Madan Lal Dhingra) है. इनका जन्म 18 सितंबर 1883 को अमृतसर के सिकंदरी गेट में हुआ था. एक संपन्न परिवार में जन्में मदनलाल ढींगरा की पढ़ाई लंदन में हुई थी, लेकिन उनका मन देश की आज़ादी में ही लीन रहता था. मदनलाल ढींगरा अंग्रेज़ों से जितना नफ़रत करते थे उतना ही उनके परिवार का झुकाव अंग्रेज़ों की तरफ़ था. दरअसल, ब्रिटिश काल के दौरान उनके परिवार को अंग्रेज़ों का विश्वासपात्र माना जाता था.

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Madan Lal Dhingra

मदनलाल ढींगरा (Madan Lal Dhingra) महज़ 25 साल की उम्र से ही भारत को अंग्रेज़ों से आज़ाद कराना चाहते थे, जिसके लिए वो हर देशवासी के मन में आज़ादी की अलख जगाने की कोशिश करने लगे. मदन लाल के ऐसा करने पर उन्हें लाहौर के Government College University से निकाल दिया गया. स्वतंत्रता के पथ पर चलने की वजह से मदन लाल के घरवालों ने उनसे सारे रिश्ते तोड़ दिए. परिवार से अलग होने के बाद जीवन यापन करने के लिए मदनलाल तांगा चलाते थे. इस बीच वो मुंबई में भी रहे तभी इनके बड़े भाई ने उन्हें इंग्लैंड जाकर पढ़ने की सलाह दी.

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मदनलाल ढींगरा (Madan Lal Dhingra) ने अपने भाई की सलाह मानकर 1906 में लंदन के University College में Mechanical Engineering में एडमिशन लिया, जिसमें उनक भाई और वहां रह रहे राष्ट्रवादियों ने मदद की. इसी दौरान इनकी मुलाक़ात राष्ट्रवादी विनायक दामोदर सावरकर और श्यामजी कृष्ण वर्मा से हुई. कहते हैं कि, सावरकर ने मदनलाल ढींगरा को क्रांतिकारी संस्था ‘भारत’ का सदस्य बना दिया और हथियार चलाने की ट्रेनिंग भी दी.

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इंग्लैंड में इंडियन हाउस एक ऐसी जगह थी, जहां सभी भारतीय स्टूडेंट्स मिलकर बैठक लगाते थे. वहां आने वाले सभी स्टूडेंट्स खुदीराम बोस, सतिन्दर पाल, काशी राम और कन्हाई लाल दत्त को फांसी की सज़ा देने से बौखलाए हुए थे. मदनलाल ढींगरा सहित सभी स्टूडेंट्स इस फांसी के लिए वायसराय George Curzon और बंगाल एवं असम के पूर्व लेफ़्टिनेंट गवर्नर Bampfylde Fuller को ज़िम्मेदार मानते थे. इसलिए लंदन में रहकर मदनलाल ढींगरा ने दोनों से जुड़ी बहुत सारी इंफ़़ॉर्मेशन इकट्ठा कर दोनों की हत्या करने की योजना बनाई.

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मदनलाल ढींगरा के इंतक़ाम का दिन 1 जुलाई, 1909 में आया, जब ‘पगड़ी संभाल जट्टा आंदोलन’ चल रहा था तो ‘इंडियन नेशनल एसोसिएशन’ के एनुअल फ़ंक्शन में एक बड़ी तादाद में भारतीय और अंग्रेज़ इकट्ठा हुए. इस कार्यक्रम में भारत सचिव के राजनीतिक सलाहकार Curzon Wyllie भी मौजूद थे, तभी मौक़े का फ़ायदा उठाकर मदनलाल ने उनके चेहरे पर 5 गोली दाग दीं. Curzon Wyllie की हत्या करने के आरोप में उनपर मुक़दमा दायर हुआ और 23 जुलाई, 1909 को फांसी की सज़ा सुनाई गई.

सज़ा सुनाए जाने के दौरान उन्होंने कहा,

मुझे गर्व है कि मैं अपना जीवन देश को समर्पित कर रहा हूं.

-मदनलाल ढींगरा

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इसके बाद, 17 अगस्त, 1909 को इस वीर स्वतंत्रता सेनानी को लंदन के Pentonville में फांसी दे दी गई. देश में आज़ादी की अलख जगाने वाले मदनलाल ढींगरा की इस आग ने आंदोलन का रूप लिया और आज़ादी की इस लड़ाई के ज़रिए हर देशवासी में एक मदनलाल ढींगरा अमर हो गए.

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