पत्र में कहा गया है कि ऐसी नहीं है कि हिन्दुओं पर हमले की कहीं-कहीं इक्की-दुक्की घटनाएँ हो रही हैं, ऐसा भी नहीं है कि इससे पहले ऐसा नहीं हुआ है।
बांग्लादेश में शेख हसीना द्वारा प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देकर देश छोड़ने के बाद वहाँ हिन्दुओं के खिलाफ हिंसा शुरू हो गई। कई हिन्दुओं की हत्याएँ हुईं, मंदिरों पर हमले हुए। बांग्लादेश-भारत सीमा पर कई पीड़ित हिन्दू पलायन कर के जमे हुए हैं और गुहार लगा रहे हैं कि उन्हें भारतीय सीमा में आने दिया जाए। आँकड़ों की मानें तो ऐसी सवा 200 से भी अधिक घटनाएँ हुई हैं। पीड़ित हिन्दू लगातार भारत से मदद की गुहार लगा रहे हैं, अब तक किसी भी अंतरराष्ट्रीय संस्था या संगठन ने इनके लिए आवाज़ नहीं उठाई है।
अब 57 बुद्धिजीवियों ने बांग्लादेश में हिन्दुओं के नरसंहार पर चिंता जताते हुए भारत सरकार से मदद का आग्रह किया है। हिन्दुओं के उत्पीड़न पर चिंता जताते हुए इन बुद्धिजीवियों ने लिखा कि हिन्दुओं को लक्षित कर के हो रही इस हिंसा ने एक नए पैटर्न की तरफ विश्व का ध्यान आकर्षित कराया है। इस पत्र में मेहरपुर में इस्कॉन मंदिर को जलाए जाने और हिन्दुओं की मॉब लिंचिंग का जश्न मनाए जाने के वीडियो का जिक्र करते हुए बताया गया है कि ये परेशान करने वाली घटनाएँ हैं।
पत्र में कहा गया है कि ऐसी नहीं है कि हिन्दुओं पर हमले की कहीं-कहीं इक्की-दुक्की घटनाएँ हो रही हैं, ऐसा भी नहीं है कि इससे पहले ऐसा नहीं हुआ है। जिक्र किया गया है कि कैसे हिन्दुओं पर हमले का बांग्लादेश में एक पूरा का पूरा इतिहास रहा है, राजनीतिक अस्थिरता के दौरान और तेज़ हो जाता है। याद दिलाया गया है कि कैसे बांग्लादेश जब पूर्वी पाकिस्तान हुआ करता था तब पाकिस्तानी फ़ौज ने 25 लाख हिन्दुओं की हत्याएँ की थीं। 2013 से लेकर अब तक बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हमले की 3600 से भी अधिक घटनाएँ हो चुकी हैं।
बांग्लादेश से हिन्दुओं के दुःखद पलायन को याद करते हुए पत्र में आग्रह किया गया है कि उनकी सुरक्षा के लिए कदम उठाया जाए। चुने हुए जनप्रतिनिधियों से अपने-अपने स्तर पर इस मामले को उठाने और भारत सरकार द्वारा उच्चतम स्तर पर इसका समाधान करने के लिए कदम उठाने की अपील की गई है। साथ ही भारतीय संसद से इसके खिलाफ प्रस्ताव पारित करने के लिए कहा गया है। पत्र में अपील की गई है कि अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के साथ मिल कर हिन्दुओं की सुरक्षा के लिए कदम उठाया जाए, पीड़ितों को सहायता से लेकर शरण दिए जाने तक के विकल्पों पर विचार हो।
इस पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में लेखक विक्रम संपत, अभिनव अग्रवाल, अरुण कृष्णन, हर्ष गुप्ता मधुसूदन, स्मिता बरुआ, वैज्ञानिक आनंद रंगनाथन और इंजीनियर योगिनी देशपांडे शामिल हैं। सभी 57 बुद्धिजीवियों ने एक सुर में दोहराया है कि भारतीय संसद द्वारा इस हिंसा को ‘हिन्दुओं के खिलाफ सांप्रदायिक हिंसा’ की मान्यता दी जाए। साथ ही उन खबरों का रेफरेंस भी लगाया गया है, जिसमें हिन्दुओं पर हमले की बातें हैं। भारत का इस्लामी-वामपंथी गिरोह लगातार इन हमलों को नकार रहा है।