हुमायूँ वाली ‘सेक्युलर मूर्खता’ की सुधा मूर्ति भी हुईं शिकार, आप जानिए रक्षाबंधन का असली इतिहास: इंद्र-शची और राजा बलि से जुड़ा है इसका महत्व

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रक्षाबंधन का त्योहार भाई-बहन के रिश्तों से भी बड़ा है, विद्वान ने बताया

उन्होंने बताया कि महर्षि वेद व्यास ने कुरुक्षेत्र युद्ध के बाद श्रीकृष्ण से कहा था कि वो युधिष्ठिर को व्रतों के लिए मार्गदर्शन करें, ताकि उनसे जो भी पाप हुए हैं वो धुल जाएँ।

credit- ऑपइंडिया

प्रत्येक वर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा को रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है, जो भाई-बहन के बीच के प्यार को प्रगाढ़ करने वाला त्योहार है। जहाँ बहन अपने भाई की रक्षा के लिए उसे राखी बाँधती है, वहीं बहन अपने भाई की रक्षा का वचन देता है। ‘बृहत्’ नामक YouTube चैनल पर कविता कृष्ण मीगामा ने हिन्दू साहित्य के जानकार डॉ श्रीनिवास जम्मालमदका से बातचीत की, जिन्होंने इस पर्व के इतिहास को लेकर कई जानकारियाँ दी। उन्होंने इससे जुड़ी प्रथाओं की भी बात की। सुधा मूर्ति जैसी राज्यसभा सांसद भी हुमायूँ को कर्णावती द्वारा रखी भेजने की कहानी फैलाती हैं, ऐसे में सच जानना ज़रूरी है।

रक्षाबंधन को अलग-अलग क्षेत्रों में अलग नामों से भी जाना जाता रहा है। ‘श्री कामेश्वरी फाउंडेशन’ के सह-संस्थापक और ‘सिद्धांत नॉलेज फाउंडेशन’ से जुड़े डॉ श्रीनिवास ने बताया कि दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों जैसे आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में ये त्योहार पहले लोकप्रिय नहीं था। उन्होंने बताया कि रक्षाबंधन सिर्फ सांस्कृतिक प्रथा ही नहीं बल्कि धार्मिक पर्व है जिसका पुराणों में भी जिक्र है। उन्होंने बताया कि ‘भविष्य पुराण’ के उत्तर-पर्व में भी इसका जिक्र है।

उन्होंने बताया कि महर्षि वेद व्यास ने कुरुक्षेत्र युद्ध के बाद श्रीकृष्ण से कहा था कि वो युधिष्ठिर को व्रतों के लिए मार्गदर्शन करें, ताकि उनसे जो भी पाप हुए हैं वो धुल जाएँ। इसमें रक्षाबंधन का भी जिक्र है। इसी तरह चक्रव्रती बलि का जिक्र है, जिन्हें जब इंद्र ने हराया तो वो गुरु शुक्राचार्य के पास कारण जानने के लिए पहुँचे। शुक्राचार्य ने पाया कि इंद्र की पत्नी शची अपने पति को राखी बाँधती हैं, इसीलिए इंद्र अजेय हैं। शुक्राचार्य ने बलि से 1 वर्ष के लिए आक्रमण न करने को कहा और श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को समझाया कि श्रावण पूर्णिमा के अवसर पर उपवास करना चाहिए।

उन्होंने बताया कि ये सिर्फ भाई-बहन ही नहीं, बल्कि अन्य महत्वपूर्ण रिश्तों में भी इसका महत्व है। उन्होंने बताया कि इस दिन मध्याह्न काल के बाद राजा को अपने मंत्रियों के साथ बैठना चाहिए और पुरोहितों को इन सबकी रक्षा के लिए उपवास करना चाहिए। उन्होंने बताया कि रामटेक में गढ़मंदिर के पुजारी उस दिन आने वाले हर श्रद्धालु की रक्षा के लिए उपवास करते हैं। ये प्रचलन पूर्वजों से ही चला आ रहा था, धर्मशास्त्र में भी इसका जिक्र है। उन्होंने समझाया कि ये शारीरिक रक्षा ही नहीं, मानसिक रूप से साथ देने का त्योहार है।

डॉ श्रीनिवास ने समझाया कि अगर कोई अवसाद में है और कोई उसका साथ दे रहा है तो ये भी रक्षाबंधन का संदेश है। इसका सिर्फ ये अर्थ नहीं है कि महिलाएँ पुरुषों से रक्षा माँग रही हैं। उन्होंने इस दौरान मेवाड़ की रानी कर्णावती द्वारा मुग़ल बादशाह हुमायूँ को राखी भेजे जाने की घटना को भी काल्पनिक करार दिया। उन्होंने इस दौरान ‘येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबल:। तेन त्वाम् प्रतिबद्धनामि रक्षे माचल माचल’ मंत्र का जिक्र करते हुए बताया कि राखी बाँधते समय इसका जाप किया जाना चाहिए।

दक्षिण भारत में रक्षाबंधन के अधिक लोकप्रिय न होने का कारण बताते हुए उन्होंने बताया कि रक्षा से जुड़े कई अन्य त्योहार वहाँ चलते आ रहे हैं। दीक्षा लेने के दौरान भी रक्षा का वचन होता है। यजमान उपवास करता है, फिर पुरोहित रक्षासूत्र बाँधते हैं। उन्होंने बताया कि यजमान समस्याओं से बाहर निकलने का सामर्थ्य विकसित करे, इसीलिए ये बाँधा जाता है। उन्होंने ये भी समझाया कि धर्मशास्त्र कहते हैं कि सभी को एक-दूसरे की रक्षा करना चाहिए। उन्होंने राखी के साथ कुमकुम-हल्दी का इस्तेमाल करने की सलाह दी। उन्होंने सूती की जगह केला फाइबर, सिल्क या ऊन इस्तेमाल करने की सलाह दी।

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