सुमेर (Sumer) कुछ समय पहले तक प्राचीनतम समझी जाने वाली सभ्यता, जहाँ की कुछ बातें सारस्वत सभ्यता से मिलती-जुलती हैं। यह बाइबिल में वर्णित ‘शिनार (Shinar) की दजला और फरात के दो-आबे के दक्षिणी-पूर्वी भाग की कहानी है। इस दो-आबे में प्राचीन काल में हर प्रकार से भिन्न दो जातियाँ निवास करती थीं। दक्षिण-पूर्वी भाग को सुमेर (शिनार) कहते थे, जहाँ रहते थे साँवले अथवा गेहुँए वर्ण और नाटे कद के, ऊँची और नुकीली नाक तथा काले बाल वाले सुमेर वासी। ये सिर एवं मुख को केशरहित रखते थे। दो-आबे के उत्तर-पश्चिमी भाग में सामी लोग थे, जिन्हें अक्कादी कहा जाता है। ये दाढ़ी और बाल रखते थे। इन दोनों के क्षेत्र मिलाकर ‘मेसोपोटामिया’ (शाब्दिक अर्थ : नदियों के मध्य) नाम दिया गया है; जहाँ बाद में बाबुल की सभ्यता आई। यह परवर्ती सभ्यता वास्तव में सुमेरी सभ्यता की देन है।
यह सुमेर वासी कौन सी जाति थी जिसने दजला और फरात के मुहानों के पास दलदलों का पानी निकालकर तथा नरकुल और उसके ऊपर मिट्टी डालकर भूमि का निर्माण किया, नहरें बनायीं, देवी-देवताओं के मंदिर और अपने लिए आवास बनाकर नगरीय सभ्यता खड़ी की? उनकी किंवदंतियों के अनुसार ये लोग पूर्व से आकर बसे। पुरानी बाइबिल के उत्पत्ति भाग में एक स्थान पर वर्णन है,
‘और वे पूर्व से आए तथा शिनार (सुमेर) में मैदान पाकर बस गए। उन्होंने एक-दूसरे से कहा, ‘हम ईंट बनायें और उन्हें अच्छी तरह पकाएँ।’ उन्हें पत्थर के स्थान पर ईंट प्राप्त हुयी और गारे के लिए पंक।’
आखिर ये कौन थे, जो ईंट का प्रयोग जानते थे ? सुमेर के पास आधुनिक ईरान के दक्षिण-पश्चिमी भाग में एलम (Elam) की प्राचीन सभ्यता में भी सुमेरी तत्व पाए जाते हैं। उस सभ्यता के चार प्रसिद्घ नगरों में सुसा (या सुषा) नगरी (Susa) प्रसिद्घ है। इलम की वह राजधानी थी। मत्स्य पुराण में जहाँ इस बात का वर्णन है कि माया नगरी (हरिद्वार) में जब प्रभात, दोपहर, सूर्यास्त अथवा अर्द्घरात्रि होती है तब संसार के प्रसिद्घ नगरों में क्या समय होता है, वहाँ सुसा का संसार की प्रमुख नगरियों में उल्लेख आता है। आज भी भू-चित्रावली में ‘सुसा के भग्नावशेष'(ruins of Susa) नामक क्षेत्र देख सकते हैं। एलम तथा सुमेर इन दोनों की किंवदंतियाँ समान हैं और कीलाक्षर लिपि भी। यह स्पष्ट है कि एलम तथा सुमेर की सभ्यता के प्रणेता एक ही थे।
इन सबसे पुरातत्वज्ञ यह विश्वास करते हैं कि ये लोग पूर्व से, सारस्वत सभ्यता के धनी सिंधु की घाटी से, आधुनिक बलूचिस्तान (गांधार) होकर एलम तथा सुमेर में आए। सुमेर के एक आख्यान में ‘ओआनिज’ नामक देवता का वर्णन है, जो पूर्व से समुद्री मार्ग से आया और सुमेर को उनकी सभ्यता दी। उन्हें खेती करना, लिखना, अनेक कलाएँ और विज्ञान सिखाया। वैदेल (यहां देखें) (Waddel) ने अपनी पुस्तक में कहा है कि
‘सुमेर निवासी आर्य थे और उनके शासक वही हैं जिन प्राचीन राजाओं का उल्लेख पुराणों में आया है।’
प्राचीन सभ्यताओं में अनेक बार उस सभ्यता के निर्माता महापुरूष के जीवन से प्रेरणा लेकर अपने को भी वैसा ही आया हुआ कहने लगते हैं। जो भी हो, सुमेर वासी और सामी अक्कादी लोग आपस में इतने भिन्न थे कि सारस्वत सभ्यता से लोग गांधार तथा एलम होकर सुमेर पहुँचे, यही सत्य लगता है।
आज सुमेर की प्राचीन सभ्यता के बारे में जितने तथ्य ज्ञात हैं उतने किसी अन्य प्राचीन सभ्यता के बारे में नहीं। उन्नीसवीं सदी के बीच, जब पहले-पहल यह पता चला कि बाबुल की सामी सभ्यता ने कीलाक्षर लिपि एक प्राचीनतर जाति से सीखी, जो अपनी लीला-स्थली को सुमेर कहती है, तभी ऐसे अभिलेख मिले जिनमें सुमेरी भाषा की शब्दावली तथा बाबुली भाषा का अनुवाद साथ-साथ था। इससे सुमेरी भाषा पढ़ने तथा अर्थ समझने का मार्ग निकला। ये अभिलेख मृद्-पट्टिकाओं पर कुरेदकर, उन्हें पकाकर दृढ़ किए गए थे। उनके शिक्षालयों में पढ़ाने की पुस्तकें और शब्दकोश पकी मृद् (मिट्टी की) पट्टिकाओं के रूप में प्राप्त हुए। सैकड़ों अभिलेख मिले जिनसे साहित्य, दर्शन, विज्ञान, समाजिक तथा राजनीतिक गठन, सामान्य जीवन, अर्थव्यवस्था, धार्मिक विचार और पौराणिक गाथा, सभी पर प्रकाश पड़ता है।
भौतिक जगत और मानव
मानव का आदि देश
सभ्यता की प्रथम किरणें एवं दंतकथाऍं
अवतारों की कथा
स्मृतिकार और समाज रचना
०१ – सभ्यताएँ और साम्राज्य
०२ – सभ्यता का आदि देश
०३ – सारस्वती नदी व प्राचीनतम सभ्यता
०४ – सारस्वत सभ्यता
०५ – सारस्वत सभ्यता का अवसान
०६ – सुमेर