सारस्वत सभ्यता का अवसान

ऐसा ही एक रहस्य सारस्वत सभ्यता के अवसान का कहा जाता है। बदलती जलवायु की दैवी आपदा ही शायद इसका कारण बनी। एक जगह सीढ़ी पर कंकाल देखकर कुछ विद्वान कल्पना करते हैं कि शत्रु द्वारा पीछा करने पर सीढ़ी से ऊपर भागने की दशा में उनका शरीरांत हुआ। परंतु उस दृश्य से ऐसा लगता है कि पास की सिंधु नदी में अचानक बाढ़ आने से, जैसे बांध टूटने पर हो, छत पर जाते समय पानी के एकाएक भरने पर जल-समाधि हो गयी। अनेक बातों में आज के साधारण देहाती जीवन में सारस्वत सभ्यता के रहने के ढंग का आभास दिखता है। कला और विज्ञान में भी और उनके पशु-पक्षियों तथा वृक्षों से परिचय में भी। यदि यह आर्य सभ्यता का एक प्राचीन रूप ही था तो आर्यों का कहीं बाहर से आकर इस सभ्यता को नष्ट करना मनगढ़ंत है। संभवतः इसके नष्ट होने का कारण प्रमुख केंद्रों की ओर बढ़ती सर्वग्रासी मरूभूमि, बदलती और शुष्क-कठोर बनती जलवायु ही थी।

कैसी भी सभ्यता हो, उसमें विचार सदा एक- से नहीं रहते। वे समय के अनुसार और बदलती आवश्यकताओं के कारण परिवर्तित होते हैं। इसलिए उस समय से चले हुए सभ्यता के सूत्र को परिवर्तित तथा विषमता भेद कर देखना पड़ता है, जिससे उस धारा की प्रतीति पा सकें । इस ढंग से देखें कि कैसे सारस्वत सभ्यता ने संसार की अनेक सभ्यताओं को प्रभावित किया। भारत में सभ्यता की जो स्तर आया, वह आर्यों की अनेक शाखाओं, जिन्होंने यूरोप, पश्चिमी एशिया या भूमध्य सागर के देशों को अपना लीला-स्थल बनाया, से उच्च एवं भिन्न था। भारत की शांति की नगर-ग्रामयुक्त आवासीय सभ्यता से देसरे आर्यों के घुमक्कड़ जीवन की तुलना अर्थहीन है। पता नहीं कि यूरोपीय बर्बर, आर्यवंशी कहलाने वाले, कबीलों के घुमंतू जीवन की तथा भारत की आवासीय सभ्यता ने जिन्हें महिमामंडित किया, इन दोनों समाजों की तुलना में समान व्यवहार की अपेक्षा करने और समकक्ष रखकर देखने का बुद्घिभ्रंश कैसे उत्पन्न हुआ।

प्राचीन सभ्यताएँ और साम्राज्य



०१ – सभ्यताएँ और साम्राज्य
०२ – सभ्यता का आदि देश
०३ – सारस्वती नदी व प्राचीनतम सभ्यता
०४ – सारस्वत सभ्यता
०५ – सारस्वत सभ्यता का अवसान

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