सभ्यताएँ और साम्राज्य

सभ्यताएँ और साम्राज्य

वैज्ञानिक गल्पों की एक प्रसिद्घ माला इस सदी का असिमोव (Asimov) लिखित ‘संस्थान त्रयी’ (Foundation Trilogy) है। उसमें आज से बीस सहस्त्राब्दी बाद, जब आकाशगंगा के सभी वासयोग्य ग्रहों में मानव जाकर बसे, तब पुरानी किंवदंतियों के आदि ग्रह ‘पृथ्वी’ की खोज उनके अंतर्मन को अभिभूत करती है। इस विशाल अंतरिक्ष में वह आदि ग्रह कहाँ खो गया? वैसे ही हमने द्वितीय अध्याय में इस पृथ्वी पर मानव के आदि देश की खोज की। कहाँ मानव ने कम-से -कम दो लाख वर्ष बिताकर हाथ-पैर चलाने की कला सीखी और शरीर का सौष्ठव प्राप्त किया; क्रमबद्घ विचार करना, सोचना, तर्क करना सीखा, वाणी एवं भाषा विकसित की, कुटुंब से प्रारंभ कर समाज के रूप में रहना सीखा। जहाँ खनिज तथा कोयला साथ-साथ पाए जाते थे, जिनमें धातु बनाना सीखा। और सबसे बढ़कर अखिल मानव के लिए एक सभ्यता उपजाई। यह मानव का आदि देश-भारत।

संसार में अनेक सभ्यताएँ भिन्न देशों एवं परिस्थितियों में प्रकट हुई, कहीं विरोधी तथा संघर्षरत। अधिकांश सभ्यताएँ मिट गयी, आज उनकी स्मृति ही शेष है। पर क्या इनके अंदर कोई तारतम्य था, अथवा ऎसी कोई सभ्यता थी जो संसार की प्राचीन सभ्यताओं की प्रेरणा बनी? यह शोध इसलिए आवश्यक है कि अनेक बार ईसाई यूरोप और इसलामी अरब आज की मानव सभ्यता का  विकास ईसाई और इसलाम पंथ के उदय से बखानते हैं। जैसे उसके पहले, केवल यूनान और रोम को छोड़कर, कुछ था ही नहीं। परंतु संसार की प्राचीनतम सभ्यताएँ इन पंथों के बहुत पहले से इस पृथ्वी को घेरती एक मेखला में पायी जाती थीं। उनमें पिरोया कोई सूत्र था क्या? और कोई प्रेरणा-केन्द्र?

बहुधा ये सभ्यताएँ किसी साम्राज्य से संलग्न कही जाती हैं और इतिहास केवल इनका कालक्रम और साम्राज्यवादियों की नामावली मात्र हो जाता है। कहाँ गयी संस्कृति के मूल तत्व की खोज, जो किसी सभ्यता विशेष की प्रेरणा बने? वास्तव में मानव इतिहास संवत्सरों का क्रम और साम्राज्यों की उथल-पुथल में लगी नामावलियाँ नहीं, वह मानव के विचारों की कहानी है। विश्व विजेता बनने का स्वप्न देखने वाले आक्रमणकारी और बड़े साम्राज्यों की स्थापना करने का दंभ भरने वाले अनेक बार सभ्यता में महामारी बनकर आए और अपनी विनाशलीला फैलाकर चले गए। आज इतिहास उन्हें महान कहकर गुणगान करता है और उनकी खुशामदों की चाटुकारी को उद्धृत करता है। सांस्कृतिक प्रवाह में सबका मूल्यांकन चाहिए।

संस्कृति, जिसने शांति एवं विश्व-बंधुत्व  का संदेश दिया और शील तथा धर्म दिया, श्रेष्ठतम गुणों का बिगुल बजाया, उसकी भूमिका में मूल्यांकन चाहिए। परंतु आज का तथाकथित इतिहास तो सभ्यता की ओर न देखकर साम्राज्य और शासन का इतिहास है, उसकी क्रूरता का, काम-क्रोध-मद-लोभ का, स्वार्थ का, उसके लिए युद्घ का, संघर्ष का नंगा नाच। वह भी सही नहीं। और सभ्यता का इतिहास भुलाया तथा झुठलाया गया है। अनेक बार छोटी घटना को लेकर तिल का ताड़ बनाने की प्रवृत्ति रही है; उससे व्यापक, भ्रमपूर्ण तथा पक्षपातपूर्ण निष्कर्ष निकालने में सत्य दफना दिया। साधारणतया अनेक दुराग्रहों एवं मनोग्रथियों के शिकार, ये पुरातत्वज्ञ भ्रमजाल में फँसे दिखते हैं। प्राचीन सभ्यताओं में क्या कोई समान रीति है? और उसका उद्गम कहाँ है?

प्राचीन सभ्यताएँ और साम्राज्य

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